पुस्तक समीक्षा: इब्नेबतूती

पिछले महीने मैंने दिव्य प्रकाश दुबे द्वारा लिखित ‘अक्टूबर जंक्शन’ पढ़ी। मुझे किताब इतनी पसंद आई कि मैंने लेखक द्वारा अन्य पुस्तकें पढ़ने का फैसला किया। ‘इब्नेबतूती’ लेखक दिव्य प्रकाश दुबे की नवीनतम किताब है जो जुलाई के महीने में प्रकाशित हुई थी।

होता तो यह है  कि एक बार बच्चे जब बड़े हो जाते हैं, तो उनके माता-पिता उनकी शादी कर देते हैं। लेकिन इस कहानी में एक ट्विस्ट है। यह कहानी राघव अवस्थी और उसकी सिंगल मॉम शालू अवस्थी की है। जब राघव चार साल का था, तब उसके पिता का निधन हो गया। राघव को स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल गया है और वह तीन महीने में अमेरिका जा रहे हैं। और फिर एक दिन, राघव की माँ कार्यालय में बेहोश हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। अब राघव अपनी माँ के लिए चिंतित है और वह उसे अकेला छोड़ अमेरिका जाना नहीं चाहता है। राघव अवस्थी के मन में ख़याल आया कि अपनी सिंगल मम्मी के लिए एक बढ़िया-सा बॉयफ्रेंड या पति खोजा जाए। लेकिन यह काम जितना आसान लग रहा था, असल में वह उतना ही मुश्किल था। और फिर उसे अपनी माँ के अतीत के बारे में पता चला … एक ऐसा अतीत जिसे शालू अवस्थी ने अपने दिल के किसी गहरे कोने में छिपा रखा था।

“ज़माने से आगे तो बढ़िए ‘मजाज़’
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है।”

लेखक दिव्य प्रकाश दुबे ने क्या खूब प्रेरणा ली है ‘मजाज़’ साहब की इन पंक्तियों से, और  हमें ऐसी खूबसूरत कहानी पढ़ने को मिली। सही में, यह समाज को आगे ले जाने का वक्त है। हमने हर क्षेत्र में प्रगति की है। लेकिन हमारी मानसिकता अभी भी संकीर्ण है। कब हम अपने संकीर्ण विचारों से ऊपर उठेंगे? कब हम खुले विचारों को अपनाएंगे? कब हम समय के साथ कदम मिलाकर चलेंगे? ज़माने को आगे बढ़ाने के लिए किसी भी और क्रांति से पहले, हमें  हमारी सोच में बदलाव की जरूरत है।

इब्नेबतूती आज के समय की कहानी होते हुए भी एक ठहरे हुए समय की कहानी है। यह एक खोए हुए रिश्ते की कहानी है। जीवन में हम कुछ खूबसूरत लोगों से मिलते हैं, जो हमारे जीवन का हिस्सा नहीं बन पाते। कुछ रास्ते मंज़िल तक नहीं पहुँच पाते । इब्नेबतूती- अतीत की उन सभी अधूरी बातों, मुलाक़ातों, भावनाओं, विचारों और लोगों की कहानी है।

बहुत उम्दा कहानी लिखी है दिव्य जी ने । बहुत अच्छे से माँ बेटे का रिश्ता लिखा है। कहानी सामान्य शब्दो मे पिरोई गईं है किन्तु माता-पुत्र के सम्बन्धों व भावनाओ से सराबोर है । आज की दुनिया में भी एकल महिला के कार्यक्षेत्र के माहौल और स्थिति के बारे में अच्छी तरह से लिखा है। किताब के अंत में लेखक ने पाठकों से कुछ सवाल पूछे हैं और हमें सोचने पर मजबूर कर दिया ।

अगर मैं पात्रों की बात करूँ, तो दो मुख्य पात्र हैं- राघव अवस्थी और उनकी माँ शालू अवस्थी। राघव आधुनिक विचारों का युवक है, जिसके लिए उसकी मां की खुशी सबसे पहले है। अपनी माँ की खातिर, वह कुछ भी करने को तैयार है। शालू अवस्थी एक आधुनिक, शिक्षित सिंगल मॉम है जिसने अपना जीवन अपने बेटे को समर्पित कर दिया है। अपने पति की मृत्यु के बाद भी उसने दूसरी शादी के बारे में कभी नहीं सोचा। कहानी का तीसरा महत्वपूर्ण पात्र निशा है जो राघव की प्रेमिका है। यह निशा ही थी जो राघव को सुझाव देती है कि उसकी माँ को पुनर्विवाह करना चाहिए। निशा राघव को प्रोत्साहित करती है कि वह समाज के बारे में सोचना बंद करे और इसके बजाय अपनी माँ के बारे में सोचें। हमें अपने समाज में राघव और निशा जैसे प्रगतिशील युवाओं की जरूरत है। किताब की भाषा काफी आसान और सरल है। किताब नई हिंदी में लिखी गई है जिसे समझना आसान है। इसलिए यह उन लोगों के लिए एकदम सही है जो अभी हिंदी की किताबें पढ़ना शुरू कर रहे हैं। किताब 122 पृष्ठों की है और इसे आसानी से एक दिन में पढ़ा जा सकता है। यह किताब मुझे काफी पसंद आई। यह उन बेहतरीन किताबों में से एक है, जो आपको अंत तक बांधे रखती हैं।यदि आप कुछ आसान और सुंदर पढ़ना चाहते हैं तो यह किताब आपके लिए है।

©2020 Shaloo Walia All rights reserved

 

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