पुस्तक समीक्षा: सन् सत्तावन (अनसुनी दास्तान)

आप 1857 की क्रांति के बारे में कितना जानते हैं? 1857 की क्रांति पर हमारा ज्ञान हमारे इतिहास की किताबों के एक अध्याय तक सीमित है। 1857 की क्रांति स्वतंत्रता के लंबे संघर्ष की दिशा में भारतीयों का पहला प्रयास था। आजादी के इस संघर्ष में अनगिनत भारतीयों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। हम कुछ स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में जानते हैं लेकिन ऐसे कई गुमनाम नायक हैं जिनकी वीरता और बलिदान की कहानियों को बताया जाना चाहिए। ‘सन् सत्तावन (अनसुनी दास्तान)’ऐसी ही एक कहानी पर आधारित है।

‘ सन् सत्तावन (अनसुनी दास्तान)’ लेखक एस एम अशरफ जमाल की दूसरी किताब है। यह एक लघु उपन्यास है, लगभग 180 पृष्ठों का।।  किताब का genre historical fiction है।  लेखक ने मुझे किताब की एक कापी भेजी समीक्षा के लिए। मैंने पहले अपने यूट्यूब चैनल पर लेखक की पहली किताब ‘महावत’ की समीक्षा की है। मुझे यह किताब बहुत अच्छी लगी थी। तोह फिर जब लेखक ने मुझे अपनी दूसरी किताब के बारे में बताया और मुझसे इसकी समीक्षा करने का अनुरोध किया, तब मुझे भी दिलचस्पी थी कि लेखक ने इस बार कौन सी रोमांचक कहानी लिखी है।

किताब का कवर सुंदर है। जैसा कि आप कवर पर देख सकते हैं, इसमें लड़ाई की तस्वीरें हैं। इसलिए किताब के शीर्षक और उसके कवर से, हम अनुमान लगा सकते हैं कि 1857 की क्रांति के साथ कुछ लेना-देना है। लेखक ने इस किताब को लिखने के पीछे अपने मकसद के बारे में संक्षेप में बताते हुए किताब की प्रस्तावना लिखी है। और लेखक प्रस्तावना में कहते हैं:

‘ये दास्तान हमारी पहली जंग-ए-आज़ादी की सच्ची घटनाओं की नींव पर कल्पनाओं की ईंट से रची गयी है। ये एक कोशिश है उस वक़्त के कुछ कम मशहूर क्रांतिकारियों की क़ुर्बानियों को आपके सामने पेश करने की, जिन्हें आज के इतिहासकारों ने किन्हीं वजहों से कम तरजीह दी। ये उस वक़्त के आमजनों के एहसासों, कोशिशों और बलिदान को कल्पना के पाँव देकर आप तक पहुँचाने की कोशिश है। ये दास्तान हमारी समृद्ध संस्कृति और दौलतमंद तारीख़ की गवाह है। ये दास्तान हमारे मुल्क में बहने वाली ज्ञान की हर धारा का संगम है। ये दास्तान न कि सिर्फ़ पुरुष और महिला नेताओं के कारनामे आपके सामने रखती है बल्कि पर्दे के पीछे अपना सब कुछ गँवा देने वाली औरतों की कहानी भी पेश करती है। ये भारत माँ के बेटों के बीच पनप आयी खाई को कुछ कम करने की कोशिश है, जिसकी आज हमारे वतन को सख़्त ज़रुरत है।’

अब बात करते हैं किताब के प्लॉट की: यह कहानी है 1857 की अवधि के दौरान जब भारतीय अंग्रेजों के अत्याचारों से तंग आ चुके थे। मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में, स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने की योजना बनाई। इनमें से प्रमुख थे नाना साहब, झांसी की रानी, ​​तांत्या टोपे, बेगम हजरत महल और बख्त खान। एक तरफ, ये नेता विद्रोह की योजना बनाने में व्यस्त थे और दूसरी ओर,एक समानांतर कहानी है कबीर। जब कबीर छोटा था, उसके माता-पिता को अंग्रेजों ने बेरहमी से मार डाला था। उसका पालन-पोषण गाँव के पंडित और इमाम साहब ने किया। कबीर अपने माता-पिता की मौत का बदला लेना चाहता था । वह अंग्रेजों से नफरत करता था । लेकिन एक दिन उसकी मुलाकात एक ब्रिटिश कर्नल की बेटी अलीजी से हुई। उसके पिता को स्वतंत्रता सेनानियों ने मार डाला था और अब वे अलीजी को भी मारना चाहते थे। क्या कबीर अलीजी को बचायेगा? क्या कबीर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होगा? तो यह सब जानने के लिए पढ़ें ‘सन् सत्तावन (अनसुनी दास्तान)‘।

यह किताब न केवल कबीर के बारे में एक काल्पनिक कहानी है बल्कि 1857 की क्रांति के ऐतिहासिक तथ्यों को भी प्रस्तुत करती है। हमें पता चलता है कि नाना साहेब ने विद्रोह 1857 की योजना कैसे बनाई, कैसे उन्होंने सभी स्वतंत्रता सेनानियों को एक साथ जोड़ा और कैसे उन्होंने विद्रोह का नेतृत्व करने के लिए बहादुर शाह जफ़र को मनाया।

यह किताब एक भूले-बिसरे नायक की भी कहानी है- मौलवी अहमदुल्लाह, जो फैजाबाद के मौलवी के नाम से प्रसिद्ध है। मौलवी अहमदुल्लाह शाह को अवध क्षेत्र में विद्रोह के प्रकाशस्तंभ के रूप में जाना जाता था। 1857 के विद्रोह के बारे में अपना संस्मरण लिखते हुए, जॉर्ज ब्रूस मेलसन और थॉमस सीटन जैसे ब्रिटिश अधिकारियों ने अहमदुल्लाह की साहस, वीरता, और सैन्य क्षमताओं के बारे में उल्लेख किया। थॉमस सीटन सीटन अहमदुल्लाह के बारे में कहते हैं कि: वह महान क्षमताओं वाला, अदम्य साहस वाला, दृढ़ निश्चय वाला और विद्रोहियों में अब तक का सबसे अच्छा सैनिक था। मैंने मौलवी अहमदुला के बारे में कभी नहीं सुना था था। मुझे हमारी इतिहास की किताबों में इस महान स्वतंत्रता सेनानी के बारे में कुछ भी पढ़ना याद नहीं है। इस प्रेरक और विस्मृत स्वतंत्रता सेनानी की कहानी पाठकों तक पहुँचाने के लिए मैं लेखक को बधाई और धन्यवाद देती हूँ।

आज के समय में जब निहित स्वार्थ वाले कुछ राजनेता हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफरत को बढ़ावा देने की कोशिश करते हैं, यह कहानी हवा की एक ताजा बयार के रूप में आती है जो हमें याद दिलाती है कि हमारे पूर्वजों ने आजादी हासिल करने के लिए कितने बलिदान दिए थे। आजादी की लड़ाई में हिंदू और मुस्लिम दोनों ने अपना खून बहाया था। हमें ऐसी और कहानियों की जरूरत है जो हमें सांप्रदायिक नफरत से ऊपर उठने और अपने देश को को प्राथमिकता देने के लिए प्रेरित करें।

किताब की भाषा की भाषा हिंदी है, लेकिन लेखक ने उर्दू शब्दों का भरपूर उपयोग किया है। उर्दू का इस्तेमाल इस किताब को एक अलग ही रूप देता है। हालाँकि आप वाक्यों को समझ सकते हैं, लेकिन फिर भी कहीं-कहीं उर्दू शब्दों को समझना काफी मुश्किल है।  अच्छा होता अगर लेखक ने अंत में उर्दू शब्दों और उनके अर्थों की glossary (शब्दावली) दी होती।

बहुत उम्दा किताब लिखी है लेखक ने । कहानी कल्पना और इतिहास का बेहतरीन मिश्रण है। कहानी तेजी से आगे बढ़ती है और पाठकों को अंत तक बांधे रखती है। किताब न केवल आपका मनोरंजन करती है बल्कि आपको शिक्षित भी करती है। चूंकि किताब छोटी है, आप आसानी से इसे कुछ घंटों में पढ़ सकते हैं।यदि आप एक तेज़, रोमांचक और शिक्षाप्रद किताब की तलाश में हैं तो यह किताब आप के लिए है।

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